हिंदी दिवस-2023 पर माननीय शिक्षा मंत्री जी का सन्देश || हिंदी दिवस 2023 के अवसर पर माननीय गृह मंत्री जी का संदेश

स्वरचित कृतियां


*आज का भारत*

निज को बांट लिया है हमने,
पूंजीपति-मजदूर, दीन - अमीर में,
गुर्जर-हरिजन ,जाट-ब्राहमण,
राजपूत और अहीर में।
धुनिया और जुलाहा, सिया-सैय्यद
शैख-पठान में,

मगर कहीं मुझे नजर न आती,
आज जनता पूरे हिंदुस्तान में।
पाटलिपुत्र से पंचनद तक,
आज अंगुलिमाल बिहरता।
अश्रु क्रंदन पर पुलकित हो,
हँस रही खलखल बर्बरता।

पथ सूझता नहीं दिग्भ्रमित देश को,
इस अंध सुरंग में,
फैल रहा यह गरल निरंतर,
मातृभूमि के अंग-अंग में,
बोलों क्या पुनः डूबेगा ,
देश हमारा,अंध कूप में?
क्या फंसा रहेगा,
मंदिर मस्जिद और स्तूप में?

जोर-शोर से क्षेत्रवाद के ,
स्वर फिर से लगे उभरने।
अलगाव के गड़े अतीत में ,
मुर्दे फिर से लगे उखड़ने,
नियति के चौराहे पर ,
यह देश हमारा पुनः खड़ा है,
समाधान की दिखती नही किरण,
प्रश्न यह विकट बड़ा है।
है हरा अभी तक जख्म मुल्क का ,
क्या फिर से यह देश बंटेगा?
सैंतालीस में कटी भुजाएं ,मां की,
क्या फिर से अब सिर कटेगा?
तू बोलो मेरे देश हाय!
हृदय में कितना दर्द अटेगा।
घिरा गगन में घन संसय का,
बोलो क्या कभी नहीं छटेगा।

पूछो मत सुष्मिता कानन में
किसने आग लगाई
इस जघन्य पाप का सारा,
देश है उत्तरदायी |
चरण-चरण पर लगे सजाने,
अपने सपनों के राजमहल।
आज जल रहा देश तो यह मत पूछो,
किसने की प्रथम पहल।

भारत हारा तो समझो हार गई,
करुणा की सुरसरिता
भारत हारा तो समझो
तम से अब हार गया है सविता,
तत्क्षण महामारण का,
भीषण प्रलय ज्वार उठेगा,
सम का अखंड-ब्रती वसुधा का,
त्राता ही जब हार उठेगा।

केवल अस्थि भष्म ही शेष मिलेगा,
फिर भावी नर को भू पर।
नीचे होगी मरघट की निरवता ,
और चंद्र सितारे ऊपर।
मत्य पल्निन पर बैठ मनाती
शौक दिवस यह वसधा होगी
साम्राज्ञी सम्पूर्ण सष्टि की
तब विजयिनी पशुता होगी |
उठो चंद्र से, मेघ मंद्र से,
वीरों भारत को एक करो।
अखंड मातृभूमि का तुम,
विश्व माता-पद पर अभिषेक करो।
तुम मुक्त करो राष्ट्रभक्ति को.
तोड़ शैल की निर्मम कारा,
संचारित कर दो अडिग,
राष्ट्रीयता की धारा।
राष्ट्रीयता की धारा।।

* नाम :- मौसम कुमारी,
अनुक्रमांक :- 21BSM031


 

*हिंदी*

हिंदी वैभव हिंद की, हिंदी ही अभिमान ।
हिंदी से ही है सखे, भारत की पहचान ।।
हिंदी घुट-घुट कह रही,जागो सारे लोग।
पश्चिम के परिवेश का नहीं पालना रोग ।।
हिंदी भाषा को नहीं, दूजो से कर तोल।
हिंदी पूरे विश्व में, बोल मधुर अनमोल ।।
हिंदी के उत्थान में, करके पावन कर्म ।
यही राष्ट्र भाषा बने, चलो निभाये धर्म ।
जो मुख से करते सदा, हिंदी का गुणगान।
अंग्रेजी पढ़ते वही, बनने परम महान।।

*नाम –राजकुमार बैरवा
अनुक्रमांक –22BCS204



*याद है वो दिन, बचपन-जवानी के दिन”*

१. सपने देखे थे बहुत बचपन में
एयरोप्लेन उड़ाऊंगा, कलेक्टर बनूँगा, शाहरुख़ खान बनूँगा
पर किस्मत में लिखा था, इंजीनियरिंग , वो भी प्रोडक्शन इंजीनियरिंग
अब भेजता हूँ लिंक व्हाट्सप्प से और कहता हूँ
भाई क्लिक कर देना २० रूपए तुझे मिलेंगे, और २० रूपए मुझे !

२. विद्यालय के गेट के सामने लगे वृक्ष के नीचे
मैं खड़ा अपनी लाल डंडे वाली साइकिल पे
पत्तियों के बीच से लेज़र सी नज़रे मेरी, निहारती उसे!
वो आई थी लहराते हुए बालो के साथ
चौहद्दी के इस तरफ मैं खड़ा, देखता , निहारता उसे!
आँखों में मेरी प्यार की वो चमक, मानो जैसे कोहिनूर पे पड़ी रौशनी,
छोटी मुस्कान में छिपी हज़ारो बाते, लबो पे मचलाते होंठ
पहले प्यार का वो एहसास होता है ख़ास!
जी घबराना,सिसककर आहे भरना,तिरछी निगाहो से उसे देखना
उसकी तकलीफो को छूमंतर कर देना,रातो की नींद
दिन का चैन, बिछुड़ने का भय, ना मिल पाने का डर
अभी क्या करू की कश्मकश,तड़पता मन, उसकी याद में,
होता है ख़ास, होता है ख़ास, जवानी की है यही शुरुआत !

३. ज़िन्दगी की भाग दौड़ में, कब निकल गया बचपन, पता नहीं
यू पी एस सी की तैयारी ने कब प्यार से दूर किया पता नहीं!
सुबह उठता हूँ सपनो को संजो कर , नई इबारत लिखने की चेष्टा लिए
दौड़ते जीवन में ठहरता नहीं, कही पीछे ना रह जाऊ इसलिए!
बचपन के वो दिन, आंगन में पड़े पिट्टूक दोस्त संग!
लौट आ सकता मेरा वो दिन, बचपन के मेरे प्यारे दिन!
पाँव से मिटटी में बनाता गोला मैं ,
कंचो की खनखनाहट से खेलता खेला मैं !
याद है वो दिन, काश लौट आ सकता मेरे बचपन के वो दिन!!

४. मात-पिता ने जन्म दिया, रोता-रोता आया मैं
दुनिया को देखा मुझपर हस्ते-हस्ते,  मैं !
रेंगते हुए , खड़ा होना सिखाया
हवा का झोका आया तो माँ के आँचल में छिप जाता, मैं !
कुर्सी में बिठालकर,पाँव में जुरारबे पहनाई, कही भूका ना रहू
मुँह में रोटी खिलाई, मेरे स्कूल के दिनो को ख़ास बनाई, मेरी माँ!
नए दोस्तों संग मस्ती की,मैडम ने कम प्यार किया तो शिकायत की
आलिंगन में वो जादू था,सभी दुखो का एक निवारण था!
पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया, दुनिया में जीना सिखाया!
स्वावलम्बन की सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते , कब उनसे दूर हुआ
मैं अपने में होता चला गया, उनसे दूर होता चला गया, पता नहीं!
अब तो चिंता ने नींद छीनी, क्या करू क्या नहीं ने बेचैनी बड़ाई
कब आखरी बार सोया था, पता नहीं,
शायद गाँव में माँ की गोद में सिर रखकर नींद आई थी
काश लौट आ सकते मेरे दिन, बचपन के प्यारे दिन!!

५. अब तो हस्ता है मेरा साम्राज्य मुझे देखकर ,
आईना भी दिखाता है चेहरे की कसावट, झुर्रियों में बदलकर!
बहुत किया था गुरुर , अपने बनाये साम्राज्य पर
आखिर जाना तो था मुझे सबकुछ यही छोड़कर!
आया तो था दुनिया जीतने,पर जा रहा हूँ, अपने दोनों हाथ खाली करके !
आज लेटा हूँ अपनी मृत्युशय्या पर , क्षणिक में दौड़ती मेरे जीवन की कहानी
पर अफ़सोस, अनगिनत - अनसुनी कहानिया हुई ख़ाक, मेरी
आया तो था जीने , पर जा रहा हूँ बिना जीवन जिए !
यही तक थी मेरे जीवन की कहानी,
काश लौट आ सकते,वो दिन, फिर एक बार जी लेता मेरे बचपन के वो दिन !!

*नाम – विशाल पाटील
अनुक्रमांक – 21PDSE01



*चुनावी नेता*

भोली भाली जनता को वो, सपने खूब दिखाता है, पांच साल में वोट मांगने, एक नेता आता है ।।
1. नेताजी आए और बोले, देखो भइया सुनो जरा,
अपना वोट मुझे ही देना, मैं हूं सोना खरा खरा ।
जनमानुष के हाथ ये जोड़े, लाचारों के पैर पड़े,
इनके भाषण और वादे सुन, जनता चने के झाड़ चढ़े ।
हाथ जोड़कर आने वाला, जेबें भरता जाता है, पांच साल में वोट मांगने, एक नेता आता है ।।
2. बोलेरो से आए नेता, मैंने उनको बतलाया,
सड़क पानी की हालत खस्ता, नेता जी को दिखलाया ।
टेंडर निकला उनके नाम पर, जिनसे उनकी खूब पटी,
सड़क बनी पर भ्रष्टाचार के, गड्ढों की वो भेंट चढ़ी ।
अगले चुनाव में वाहन उनका, फॉर्च्यूनर बन जाता है, पांच साल में वोट मांगने, एक नेता आता है ।।
3. वोट मांगने भाषण, वादे, कूटनीति अपनाते हैं,
आगे जोड़े हाथ सभी के, पीछे नोट बंटाते हैं ।
महिलाओं को साड़ी देते पुरुषों को देते पौआ,
जो जिसे पसंद सभी कुछ देते, चौ तरफ हौआ-हौआ ।
जीत जाने के बाद भी ये पैसा, सूद समेत कमाता है, पांच साल में वोट मांगने, एक नेता आता है ।।
4. चुनाव जीतने शाम दाम और, दंड भेद उपयोग करें,
कुछ नहीं बचे तो लोमड़ी जैसे, नए-नए प्रयोग करें ।
फलां योजना में वो रेवड़ी, जनता हेतु छाँट रहे,
कर्जे लेकर मुफ्त की चीज़ें, गाड़ी साइकल बांट रहे ।
उनके बाप का कुछ नहीं जाता, जनता का तो जाता है, पांच साल में वोट मांगने, एक नेता आता है ।।

*नाम – अमन सिंह राजपूत
अनुक्रमांक – 20PMEE02



*नया भारत*
सिद्ध हो स्वप्न ऐसे भारत का
जिसमें स्वच्छता हो कल-कल
मन में मानव मूल्यों की पावनता
विकास हो निरंतर चंचल।

रूढ़ी मुक्त हो मानसिकता अपनी
परंपराओं के रंग में सराबोर हो
भूले, भिसड़े, लाचारों में भी
आगे चलने का ज़ोर हो।

जब सरहद पर कोई भारत माता को आँख दिखाता,
तब भारत का सैनिक अपने शौर्य पर इठलाता।
दुश्मनों को उनकी औकाद बताता,
करोड़ों जनता उन पर अपना गर्व जताता।

नारी सशक्त हो
देश के लिए तैयार रक्त हो।
'अटल' का पूरा सपना हो
दिल्ली से गिलगित तक अपना हो।

ये शताब्दी हमारी है
चलो भारत के वीर जवानों
जग जीतने की तैयारी है
ये शताब्दी हमारी है।
*जानते हो ना*
अलग-थलग पड़े हैं सब लोग,
कोई कमाई तो कोई पढ़ाई में मदहोश,
चार दीवारी से नहीं
चार लोगों की साझेदारी से बनता है
घर जानते हो ना।

वो मुझे रौंद कर आगे निकला,
निकला रौंद कर उसे कोई और,
ज़िंदगी छोड़
ज़िंदगी की तलाश में निकला है हर कोई
शहर जानते हो ना।

सच को झूठ,
झूठ को अच्छा बताया जा रहा है,
हुक्मरानों के डर से
शरीफों को नीचा दिखाया जा रहा है
खबर जानते हो ना।

एक बार मरना ठीक था,
मरने से बच के हर रोज मरना पर रहा है,
दूसरों की नजरों में हार कर गिरना ठीक था
यूँ जीने में खुद की नजरों में गिरना पर रहा है
डर जानते हो ना।

जो ठिकाना था मेरा,
अब कई लोग बसर करते हैं,
एक मुझे ही डूबने, गिरने, सम्भलने की इजाज़त थी
अब कई लोग सफ़र करते हैं
नज़र जानते हो ना।

*क़ित'अ*
लिख दे कर्म की कलम से अपनी कहानी
कि विधि भी जिसको ना मिटा सके
विघ्न-बाधा झुके सब तेरे आगे
कि तुझको ना कोई झुका सके।

*नाम – सानु गौतम
अनुक्रमांक – 20BCS197



*यन्त्र और “मन की बात”*

एक बार मेरे हाथ में एक यन्त्र आया जिसने सामने वाले के विचार को अपने आप सुनाया
बिना बोले उसके मन की बात मेरे मन तक आ रही थी वो जो न बताना चाहे वो भी सुना रही थी
बचपन में यन्त्र के साथ दोस्त के घर गया यन्त्र घुन्घुनाया अपने आप सामने से विचार आया
दोस्ती की मम्मी चिल्ला रही थी मुझको मन ही मन गरिया रही थी खुद तो पडता लिखा है नहीं और मेरे बच्चे को और बिगाड़ रहा है उनके मन के विचार सुनके मै घबराया , तब तक सामने से दोस्त की मम्मी ने बुलाया और बहुत ही प्यार से बिठाया मुझको चाय के साथ समोसा भी खिलाया .
उनके मन के विचार को जानने के बाद भी .......मैंने समोसे और चाय पर विश्वास दिखाया

एक दिन स्कूल में यन्त्र के साथ गया यन्त्र फिर घुन्गुनाया हमेसा की तरह सामने वाले का विचार आया , मेरे बेस्ट फ्रेंड ने मेरे ही टिफिन को खाया फिर इल्जाम दूसरो पर लगया
जब तक मै कुछ कहता वो बोला भाई, कोई चुपके से तेरा और मेरा टिफिन खा गया सिर्फ ये मिर्ची और आधी पूड़ी  बचा गया है मै भी मन ही मन मुस्कुराया और मिर्ची के साथ आधी पूड़ी का मज़ा उठाया

अब आई कॉलेज की बारी
कॉलेज में यन्त्र साथ था दोस्तों पर पूरा विश्वास था मेरा दोस्त मेरी ही गर्लफ्रेंड को घुमा रहा था बिना बताये ... मूवी दिखा रहा था यन्त्र ने फिर साथ निभाया और घुनघुनाया
जैसे ही दोस्त आया उसके मन के विचार को सुनाया l
कैसा चोमू सा लड़का है सिर्फ पैसा खर्च करता है  “निकिता आज नाराज है इसलिए तेरे से उदाश है” मै भी हमेसा की तरह मुस्कुराया और दोस्तों पर हमेसा की तरह विश्वास दिखाया, यन्त्र का धन्यवाद जताया जिसने अच्छे और बुरे का फर्क समझाया

शादी के लिए लड़की देखने गया l यन्त्र साथ था और घुनघुनाया फिर सामने से विचार आया
उसकी मम्मी को मेरे पर ऐतराज़ था..... नाता है मोटा है काला है लेकिन सरकारी नौकरी वाला है
मैंने भी हिम्मत दिखाई और उसकी लड़की से शादी निभाई

एक बार मैं ऑफिस जल्दी आया सर  ने देखा और यन्त्र घुनघुनाया
सामने के विचार आ रहे थे और सर मुस्कुराहे थे ,....
आज क्या ख़ास है जरूर कोई बात है ........सर बोले आज तो मौसम बहुत अच्छा है
मैंने कहा सर मायके में घर्म्पत्नी और स्कूल में बच्चा है

आज भी यन्त्र साथ है सामने से इतने विचार आ रहे है मन की बात सुना रहे है
कभी जरूरत पड़े तो यन्त्र मेरे से ले जाना और अपनी किस्मत यन्त्र के द्वारा अजमाना
अच्छे और सच्चे का फर्क बताएगी यही यन्त्र की खासियत है वो लाइफ का सबक जरूर आप को सुनाएगी

*नाम – आदेश कुमार
पीएफ संख्‍या – 77



*सत्य कथा बचपन की*
*’’मेरी मॉ का पागलपन’’*

1) मेरी मॉ का पागलपन इतना बढ़ गया,
कि मुझे गायक बनाने का नषा सा चढ़ गया।
एक दिन संयोग से एक गुरू भी मिल गया,
मॉ को तो मानो साक्षात भगवान ही मिल गया।

2) एक दिन की बात सुनाऊॅ, अपने दिल का हाल बताऊॅ।
गुरू पूर्णिमा आ गई, और सिर पर पड़ गया भार।
मॉ ने दिया नारियल पैसा, गुरू का पूजन करने सार।
मैं तो भाई बहुत छोटा था, डर गया ऐसा करने को यार।
भाग गया मैं क्लास छोड़कर, सीधे पहुॅचा घर के द्वार।

3) मॉ ने देखा जैसे ही, वह आग बबूला हो गई।
लेकर झाड़ू करी पिटाई, बात समझ में आ गई।
उल्टा लौटा रोते रोते, क्रोध से दिल घबरा गया।
गुरू ने पूछा क्या हैं बेटा, तू क्यों इतना घबरा गया।

4) उस दिन समझा मॉ की इच्छा, सौंगंध खाकर आ गया।
अब तो बनूंगा मैं भी गायक, दिल को यूं समझा दिया।
मॉ करती थी चूल्हा चौंका, मुझको गंजी पकड़ा दिया।
कैसे गाते हैं गाना, ये राग मुझे समझा दिया।

5) चढ़ गया मैं तो मंच पे भैया,
गाना गाकर भी आ गया।
संगीत के सप्त स्वरों का भैया,
राज समझ मे आ गया।
छोटा सा एक गायक बनकर,
मॉ का दिल बहला दिया।

*नाम - मृत्युंजय गर्ग